Sunday, June 20, 2010

गुम होता माँ का आंचल

आज नारी के लिए कई संस्थान बन चुके है जो हर कदम पर उनका साथ देने के लिए साथ खड़े रहते है.
लेकिन क्या किसी ने सोचा है कि हमारे बढ़ते कदम हमे कहाँ ले जा रहे है. भारत की जीवन रचना बहुत तेज़ी से बदल ती जा रही है, इसका सबसे ज्यादा असर लड़कियो पर हो रहा है. पश्चिम देशो की सभ्यता पाने के लिए लड़किया क्या कुछ नही कररही हैं, यह किसे से छुपा हुआ नही है. आज लड़कियो के सर पर दुपट्टा नाम की कोई भी चीज़ पाई नही जाती है. लेकिन शहर से दूर गांवों में यह सब कुछ देखने को मिल सकता है. मेरा कहने का मतलब बस यही है कि शहर से यह चलती हवा कही गांवों तक ना पहुच जाए और इसका अंत इतना बुरा ना हो कि बच्चो के लिए फिर कही माँ का आचल गुम ना हो जाए!

16 comments:

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  2. असद भाई में आप से सहमत नहीं हु ! अगर हम बाहरी सभ्यता को सीखते है ! तो इस का मतलब ये नहीं है ! की हम अपनी सभ्यता को भूल गए !

    साजिद की कलम

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  4. Aapke lekh se sehmat hu. Mard ho ya Aurat, sabhi ko apni seema mein rehna chahie. Yahi hamari bhartiye sanskriti hai.

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  5. Nice Post! Please remove Word verification.

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  6. आप दोनों के सुझाव के लिए बहुत बहुत धन्यवाद !

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  7. M L A साहब मैंने Word Verification हटा दिया है !
    क्या आप के कही के MLA हैं?

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  8. उत्‍तम: विचार:


    सत्‍यवचनम् ।।


    http://sanskrit-jeevan.blogspot.com/

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  9. आपसे सहमत हूँ. अब जींस टीशर्ट पहनने वाली आँचल की छाया कैसे देगी !!

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  10. उम्दा सोच.बधाई!

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  11. ye duniya mubarak ho bhai ! aap likhen khoob likhen yahi dua hai !

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  12. जिन्दा लोगों की तलाश!
    मर्जी आपकी, आग्रह हमारा!!


    काले अंग्रेजों के विरुद्ध जारी संघर्ष को आगे बढाने के लिये, यह टिप्पणी प्रदर्शित होती रहे, आपका इतना सहयोग मिल सके तो भी कम नहीं होगा।
    =0=0=0=0=0=0=0=0=0=0=0=0=0=0=0=0=

    सच में इस देश को जिन्दा लोगों की तलाश है। सागर की तलाश में हम सिर्फ बूंद मात्र हैं, लेकिन सागर बूंद को नकार नहीं सकता। बूंद के बिना सागर को कोई फर्क नहीं पडता हो, लेकिन बूंद का सागर के बिना कोई अस्तित्व नहीं है। सागर में मिलन की दुरूह राह में आप सहित प्रत्येक संवेदनशील व्यक्ति का सहयोग जरूरी है। यदि यह टिप्पणी प्रदर्शित होगी तो विचार की यात्रा में आप भी सारथी बन जायेंगे।

    हमें ऐसे जिन्दा लोगों की तलाश हैं, जिनके दिल में भगत सिंह जैसा जज्बा तो हो, लेकिन इस जज्बे की आग से अपने आपको जलने से बचाने की समझ भी हो, क्योंकि जोश में भगत सिंह ने यही नासमझी की थी। जिसका दुःख आने वाली पीढियों को सदैव सताता रहेगा। गौरे अंग्रेजों के खिलाफ भगत सिंह, सुभाष चन्द्र बोस, असफाकउल्लाह खाँ, चन्द्र शेखर आजाद जैसे असंख्य आजादी के दीवानों की भांति अलख जगाने वाले समर्पित और जिन्दादिल लोगों की आज के काले अंग्रेजों के आतंक के खिलाफ बुद्धिमतापूर्ण तरीके से लडने हेतु तलाश है।

    इस देश में कानून का संरक्षण प्राप्त गुण्डों का राज कायम हो चुका है। सरकार द्वारा देश का विकास एवं उत्थान करने व जवाबदेह प्रशासनिक ढांचा खडा करने के लिये, हमसे हजारों तरीकों से टेक्स वूसला जाता है, लेकिन राजनेताओं के साथ-साथ अफसरशाही ने इस देश को खोखला और लोकतन्त्र को पंगु बना दिया गया है।

    अफसर, जिन्हें संविधान में लोक सेवक (जनता के नौकर) कहा गया है, हकीकत में जनता के स्वामी बन बैठे हैं। सरकारी धन को डकारना और जनता पर अत्याचार करना इन्होंने कानूनी अधिकार समझ लिया है। कुछ स्वार्थी लोग इनका साथ देकर देश की अस्सी प्रतिशत जनता का कदम-कदम पर शोषण एवं तिरस्कार कर रहे हैं।

    आज देश में भूख, चोरी, डकैती, मिलावट, जासूसी, नक्सलवाद, कालाबाजारी, मंहगाई आदि जो कुछ भी गैर-कानूनी ताण्डव हो रहा है, उसका सबसे बडा कारण है, भ्रष्ट एवं बेलगाम अफसरशाही द्वारा सत्ता का मनमाना दुरुपयोग करके भी कानून के शिकंजे बच निकलना।

    शहीद-ए-आजम भगत सिंह के आदर्शों को सामने रखकर 1993 में स्थापित-भ्रष्टाचार एवं अत्याचार अन्वेषण संस्थान (बास)-के 17 राज्यों में सेवारत 4300 से अधिक रजिस्टर्ड आजीवन सदस्यों की ओर से दूसरा सवाल-

    सरकारी कुर्सी पर बैठकर, भेदभाव, मनमानी, भ्रष्टाचार, अत्याचार, शोषण और गैर-कानूनी काम करने वाले लोक सेवकों को भारतीय दण्ड विधानों के तहत कठोर सजा नहीं मिलने के कारण आम व्यक्ति की प्रगति में रुकावट एवं देश की एकता, शान्ति, सम्प्रभुता और धर्म-निरपेक्षता को लगातार खतरा पैदा हो रहा है! अब हम स्वयं से पूछें कि-हम हमारे इन नौकरों (लोक सेवकों) को यों हीं कब तक सहते रहेंगे?

    जो भी व्यक्ति इस जनान्दोलन से जुडना चाहें, उसका स्वागत है और निःशुल्क सदस्यता फार्म प्राप्ति हेतु लिखें :-

    (सीधे नहीं जुड़ सकने वाले मित्रजन भ्रष्टाचार एवं अत्याचार से बचाव तथा निवारण हेतु उपयोगी कानूनी जानकारी/सुझाव भेज कर सहयोग कर सकते हैं)

    डॉ. पुरुषोत्तम मीणा
    राष्ट्रीय अध्यक्ष
    भ्रष्टाचार एवं अत्याचार अन्वेषण संस्थान (बास)
    राष्ट्रीय अध्यक्ष का कार्यालय
    7, तँवर कॉलोनी, खातीपुरा रोड, जयपुर-302006 (राजस्थान)
    फोन : 0141-2222225 (सायं : 7 से 8) मो. 098285-02666

    E-mail : dr.purushottammeena@yahoo.in

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  13. असद जी , शहर की हवा गांव तक , वो तो देर सवेर पहुंचेगी ही । रही बात मां के आंचल या पिता के स्नेह की तो अब ये शहर और गांव तक कहां सीमित रही है । मैं तो अब वो मां बाप शहर और गांव दोनों ही स्थानों में पाता हूं जो जाने किन किन कारणों से अपनी संतानों तक की जान लेने से नहीं हिचकते ...कहीं बलि के नाम पर तो कहीं औनर किलिंग के नाम पर । हां जिन संवेदनाओं की बात आप कर रहे हैं वो जरूर प्रभावित हो रही हैं मगर उसका कारण एक नहीं है , बहुत से हैं और उनमें से एक पश्चिमी देशों का अंधानुकरण भी है ।

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  14. असद साहब, आपकी बात काफी हद तक सही है. लेकिन यह बदलाव की एक प्रक्रिया है. मुझे नहीं लगता की इसे रोकना आसान है. बाहरहाल आपका पहला लेख अच्छा है, बहुत-बहुत शुभकामनाएँ. उम्मीद है ऐसे ही सार्थक विषयों पर लिखते रहेंगे.



    आप पढ़िए:

    चर्चा-ए-ब्लॉगवाणी

    चर्चा-ए-ब्लॉगवाणी
    बड़ी दूर तक गया।
    लगता है जैसे अपना
    कोई छूट सा गया।

    कल 'ख्वाहिशे ऐसी' ने
    ख्वाहिश छीन ली सबकी।
    लेख मेरा हॉट होगा
    दे दूंगा सबको पटकी।

    सपना हमारा आज
    फिर यह टूट गया है।
    उदास हैं हम
    मौका हमसे छूट गया है..........





    पूरी हास्य-कविता पढने के लिए निम्न लिंक पर चटका लगाएं:

    http://premras.blogspot.com

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