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Sunday, June 20, 2010

गुम होता माँ का आंचल

आज नारी के लिए कई संस्थान बन चुके है जो हर कदम पर उनका साथ देने के लिए साथ खड़े रहते है.
लेकिन क्या किसी ने सोचा है कि हमारे बढ़ते कदम हमे कहाँ ले जा रहे है. भारत की जीवन रचना बहुत तेज़ी से बदल ती जा रही है, इसका सबसे ज्यादा असर लड़कियो पर हो रहा है. पश्चिम देशो की सभ्यता पाने के लिए लड़किया क्या कुछ नही कररही हैं, यह किसे से छुपा हुआ नही है. आज लड़कियो के सर पर दुपट्टा नाम की कोई भी चीज़ पाई नही जाती है. लेकिन शहर से दूर गांवों में यह सब कुछ देखने को मिल सकता है. मेरा कहने का मतलब बस यही है कि शहर से यह चलती हवा कही गांवों तक ना पहुच जाए और इसका अंत इतना बुरा ना हो कि बच्चो के लिए फिर कही माँ का आचल गुम ना हो जाए!