यह खबर नहीं, आईना है। खासकर उन लोगों के लिए जो सिर्फ पत्नी और बच्चों के साथ ही जीवन में खुशियां ढूंढ़ते हैं। यूं कहें जिनका संयुक्त परिवार से कोई वास्ता नहीं रह गया है। उन्हें यह खबर बताएगी कि परिवार और परिवार का मुखिया होने का मतलब क्या होता है? हम जिस परिवार की बात कर रहे हैं, उसमें मुखिया 130 वर्ष की वृद्धा है। वह न सिर्फ आत्मनिर्भर है, बल्कि अपने अनुभवों से परिवार को संस्कारित, सेहतमंद और समृद्ध भी कर रही है। 45 लोगों का यह परिवार सुख-दुख की घड़ी में दूसरों का मोहताज नहीं होता। वृद्धा डाकू सुल्ताना की लाड़ली भी रही है।
जिस 130 वर्षीय वृद्धा और उसके परिवार की चर्चा यहां हो रही है उसका नाम है कुड़िया देवी। जनवरी 1880 में राजा का ताजपुर निवासी बलदेव सिंह के घर कुड़िया पैदा हुई। उसके पिता छोटे किसान थे, लेकिन वैचारिक तौर पर क्रांतिकारी। मई 1915 में कुड़िया की शादी जिले के ही गांव बसावनपुर निवासी चतरू सिंह से हुई। इसके बाद अच्छे-बुरे दिन भी आए लेकिन, बच्चों के बीच बीतते चले गए।
वर्ष 1995 में पति की मौत के बाद कुड़िया काफी आहत हुई। 80 वर्ष साथ निभाने के बाद जब जीवन साथी अलग हुआ तो उसे भी जीने की इच्छा नहीं रह गई। फिर उसे लगा कि अगर वह बिखर जाएगी तो उसके परिवार को कौन संभालेगा? उसका छोटा बेटा भी अविवाहित था। खुद को मजबूत करते हुए फिर वह अपनी दिनचर्या में लौट आई। अपने छोटे बेटे की शादी की। उसके परिवार के पास 22 बीघा जमीन है, जो आय का मुख्य स्त्रोत है। कुछ सदस्य खेती करते हैं तो कुछ छोटा-मोटा काम और नौकरी भी।
कुड़िया के पांच पुत्र रमेशचन्द्र, बलवीर सिंह, नौबत सिंह, रामकरण सिंह, तिमर सिंह व तीन बेटियां श्यामो, कैलाशो व रामरती अपनी पत्नियों और बच्चों के साथ एक ही छत के नीचे रहते हैं। वर्तमान में ये सभी दादा-दादी के श्रेणी में पहुंच गए हैं। कुड़िया के पांचों पुत्र आज भी गांव में एकता की मिसाल बने हुए हैं। परिवार के 45 लोग कुड़िया रूपी धागे में इस प्रकार गुंथे हुए हैं कि जमाने की बुरी नजर उनका बाल भी बांका नहीं कर पाती।
कुड़िया के अनुसार उसे परिवार की महिलाओं के हाथ का खाना पसंद नहीं है, इसलिए वह अपने लिए स्वयं खाना पकाती है। वृद्धा के पोते सुरेन्द्र, राजेन्द्र, जयप्रकाश, कृष्णपाल, सुनील व अनिल ने बताया कि दादी को किसी के हाथ की बनी सब्जी अथवा दाल अच्छी नहीं लगती क्योंकि उन्हें सात्विक भोजन पसंद है।
कुड़िया ने बताया कि कई बार क्षेत्र में अकाल पड़ा है। तब लोगों ने पेड़ों की छाल अथवा प्याज आदि खाकर गुजर बसर की। उन दिनों वह कई-कई दिनों तक भूखी रह जाती थी। इसके बाद कभी प्याज तो कभी पेड़ों की छाल से क्षुधा शांत करना पड़ता था। इसके बाद से ही उसे सात्विक खानपान की आदत हो गई।
वेस्ट यूपी में रॉबिन हुड की छवि रखने वाला सुल्ताना डाकू कुड़िया के पिता बलदेव सिंह का दोस्त था। इसलिए सुल्ताना का उसके घर आना-जाना था। कुड़िया बताती है कि वह सुल्ताना को ताऊ कहकर पुकारती थी। शादी में सुल्ताना ने उसे एक गाय व बछड़ा बतौर दान दिया था। शादी के बाद भी सुल्ताना उसकी ससुराल बसावनपुर आया था और भोजन करने के बाद चला गया था।
सचमुच संयुक्त परिवार के फायदे का क्या कहना .. किसी भी संयुक्त परिवार में मुखिया की ही तो मुख्य भूमिका होती है .. पर आज भौतिकवादी युग में कोई मुखिया भी मुखिया नहीं रह पाता .. फिर आज की नई पीढी समझौते से भी घबराती है .. संयुक्त परिवार के ह्रास के यही मुख्य कारण है !!
ReplyDeleteSangeeta ji se sehmat
ReplyDeleteसंयुक्त परिवार के फायदे का क्या कहना दोस्त
ReplyDeleteAcchi Koshish Asad Ji
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ReplyDeleteKya bat hai asad accha laga padh kar
ReplyDeleteShuru main hi aap accha likh rahe hai
ReplyDeleteअसद सब तेरी तरीफ कर रहे है पर मुझे तो मज़ा नहीं आया मेरी पोस्ट पर आकर देख लिखना किसे कहते है !
ReplyDeletemamta ji aur Koshish karonga taki aapko aachha lage..
ReplyDeletedanish bhai ko thanks
ReplyDeletetafibaaj-के जब मैं ब्लॉग पर गया तो मेरा कंप्यूटर ही बंद हो गया शायद मेरा कंप्यूटर भी आपको पसंद नही करता माफ़ करना भाई फिर कभी मिलेंगे
ReplyDeleteअसद भाई आप बात की घहराई तक गये! आज इस योग मे आपके विचार अतिउत्तम है!
ReplyDeleteआपको मेरी शुभकामने
तफ़रीबाज़-आपने मुझको क्या समझा है जो यह कहा कि मुझे लिखना नही आता जनाब कम से कम मैं आपनी हद मे तो रहता हूँ!आप खुद को लेखक बताते है खुद कहने से कोई लेखक नही हो जाता जनाब आप मुझ से जले ना!
ReplyDeleteऔर हा पहले थोड़ा तमीज़ शिख लो जनाब तभी आप लेखक बन सकते हैं!
धन्य है माताराम को। जानकारी के लिए आपको बधाई.
ReplyDeleteaapka suagat hai raj kumar ji
ReplyDeleteBahut hi badhia Lekh... wah ji wah
ReplyDeletetafribaj ke blog par apki majak udai gai hai. check karo
ReplyDeleteइस अच्छे पोस्ट के लिए धन्यवाद भाई.
ReplyDeletenice post . http://hamarianjuman.blogspot.com/2010/06/4-islam-human-rights-part-4.html
ReplyDeleteबढिया पोस्ट....
ReplyDeleteलेकिन उस जमाने में जब 10-12 बरस की आयु में ही विवाह कर दिया जाता था, कुडिया देवी जी का इतनी बडी आयु (35 बरस)में विवाह होना कुछ जँच नहीं रहा....कहीं आपसे ही लिखने में तो कोई त्रुटि नहीं हुई ?
इस संयुक्त परिवार को मिलाने का शुक्रिया...लेकिन वत्स जी की बात भी कहीं सच लग रही है...उस वक्त ३५ वर्ष की उम्र में शादी???????? ज़रा जांच लें
ReplyDeleteकमेन्ट के रजा ज़रा इन साहब के कमेन्ट पर ध्यान दे
ReplyDeleteपं.डी.के.शर्मा"वत्स"
लेकिन उस जमाने में जब 10-12 बरस की आयु में ही विवाह कर दिया जाता था, कुडिया देवी जी का इतनी बडी आयु (35 बरस)में विवाह होना कुछ जँच नहीं रहा....कहीं आपसे ही लिखने में तो कोई त्रुटि नहीं हुई ?